परिचय:
स्टीविया स्टीविया रुबिडियाना (मीठी तुलसी) एक झाड़ीनुमा पौधा है इसका मूल उत्पन्न स्थल पूर्वी पुरुग्वे है ! अमेरिका ब्राजील जापान कोरिया ताइवान एवं दक्षिण पूर्व एशिया में खूब पाया जाता है इससे चीनी तो नहीं बनाई जा सकती लेकिन उसमें उपलब्ध मिठास, चीनी से 300 गुना अधिक होती है !





अतः स्वास्थ्य के प्रति जागरूक व्यक्ति जो चीनी नहीं खाना पसंद नहीं करते उनकी चाय की मिठास के लिए स्टीविया को आयुर्वेदिक मिठास रूप में प्रयोग किया जाता है अब भारत में भी इसकी अच्छी खासी डिमांड होने लगी है क्योंकि भारत में भी स्वास्थ्य के प्रति लोग जागरूक हो रहे हैं जिन्हें शुगर की समस्या है उन्हें शक्कर की जगह इसका उपयोग करना चाहिए
स्टीविया का प्रयोग:
मधुमेह रोगियों के लिए इंसुलिन को कंट्रोल रखने के लिए यह एक मात्र विकल्प इसके अलावा स्टीविया का प्रयोग मिठाइयों में औषधियों में और विभिन्न प्रकार की खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है।
स्टीविया की खेती:
यह एक समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है भारत में लगभग सभी जगह से लगाया जा सकता है , तेज प्रकाश एवं गर्म तापमान मैं स्टीविया की पत्नियों का निर्माण अधिक होता है स्टीविया में किसी भी तरह के कीट नहीं लगता है इसलिए कीटनाशक का खर्चा नहीं होता इसके अलावा इसमें सिर्फ जैविक खाद ही उपयोग की जा सकती।
मृदा की आवश्यकता:
जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी से लेकर चिकनी मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है मिट्टी का पीएच मान 6.5- 7.5 के बीच होना चाहिए मृदा में कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता को बनाए रखने का विशेष ध्यान देना चाहिए ! छारीय मृदा एवं जल भराव वाले क्षेत्र में स्टीविया के लिए अनुकूल नहीं होता।
खेत की तैयारी:
स्टीविया के लिए मृदा में कार्बनिक तत्वों का होना आवश्यक है इसके लिए प्रति एकड़ 8 से 10 टन गोबर की खाद को सही तरह से खेत में मिला देना चाहिए इसके अलावा जैविक खाद जैसे कि एजोटोबेक्टर, पीएसबी कल्चर एवं ट्राइकोडरमा भी उपयोग करना चाहिए।








1 एकड़ में लगभग 40,000 पौधे लगाए जाते हैं! इन्हें बेड पर लगाया जाता है और यदि आप मल्चिंग शीट का उपयोग करें तो और भी अच्छा होगा क्योंकि मल्चिंग शीट उपयोग करने से खरपतवार की समस्या नहीं रहती और नमी सामान्य बनी रहती। खेत में किसी भी तरह का पानी का भराव नहीं होना चाहिए इसलिए इनके पौधों को बेड पर लगाया जाता है।। सिंचाई के लिए आप ड्रिप या फ्लड पद्धति का उपयोग कर सकते हैं। सर्दियों के मौसम में 1 सप्ताह में एक बार और गर्मियों के मौसम में दो-तीन दिन में एक बार पानी देना होता है। वैसे तो इसमें किसी तरह के कीट नहीं लगते फिर भी किसी तरह का आपको लगे तो विशेषज्ञ से सलाह लेना चाहिए और किसी भी तरह का रासायनिक खाद है या रासायनिक कीटनाशक उपयोग नहीं करना चाहिए।
आर्थिक भाग:
1 एकड़ खेत में 1 साल में लगभग ढाई हजार किलो पत्तियां प्राप्त होती हैं । हर 3 महीने पर इस की कटाई होती है। यानी कि 1 साल में 4 बार कटाई होती है और सबसे अच्छी बात यह है कि एक बार फसल लगाने के बाद यह लगातार पांच साल तक हमें उपज देता रहता है।
यदि आज के मार्केट भाव की बात करें तो 150 प्रति किलो के हिसाब से लगभग चल रहा है। इस हिसाब से 2,500 किलो सूखे पत्तियो की कीमत 375,000 होती यदि इस अमाउंट में से लागत के रूप में 100,000 रुपए घटा लिए जाएं तो भी 275,000 प्रति एकड़ का शुद्ध मुनाफा किसान को हो सकता है।इसके अलावा इस पौधे में साल भर बीज लगता रहता है जिसे ऊंचे दामों पर बेचा जा सकता है!
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